बंगाल के लिए दुर्गा की आराधना से बड़ा कोई उत्सव नहीं है। पूरा बंगाल देवी दुर्गा की भक्ति के रंग में रंग जाता है।
माता के द्वारा महिषासुर से युद्ध एवं वध करके संसार को आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने की ख़ुशी में मनाया जाता है। इस उत्सव का आरम्भ महालया नवरात्री के पहले दिन से होता है।
दानवो से युद्ध कर देवी ने उन्हें परास्त किया तब सभी देवो ने मिलकर देवी के विभिन्न रूपों की आराधना की जो नवरात्री का पर्व बना।
इस दोनों ही तरह की पूजा में रीति-रिवाज के अलावा सब कुछ बिल्कुल अलग होता है। दो अलग अलग दुर्गा पूजा से अर्थ है, एक जो बहुत बड़े स्तर पर दुर्गा पूजा मनाई जाती है, जिसे पारा कहा जाता है।
और दूसरा बारिर जो घर में मानाई जाती है। पारा का आयोजन पंडालों और बड़े-बड़े सामुदायिक केंद्रों में किया जाता है। वहीं दूसरा बारिर का आयोजन कोलकाता के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रों में किया जाता है।
पूजा के आखिरी दिन महिलाएं सिंदूर खेला खेलती हैं। इसमें वह एक दूसरे पर सिंदूर से एक दूसरे को रंग लगाती हैं, और इसी के साथ अंत होता है। इस पूरे उत्सव का।