लेकिन इतने बदलावों के बाद भी हमारे पुरखों ने अपनी पकवान शैली को धरोहर की तरह सहेजा। उस भारतीय खाद्य परंपरा को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपा। पूरब से लेकर पश्चिम तक हो या उत्तर से लेकर दक्षिण तक आप भारतीय खानों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं खोज सकते। पुरातन भारतीय खानें में अधिकतर शाकाहार पर काफ़ी ज़ोर था। समय दर समय भारतीय खानें की परम्परा में बड़ा बदलाव आया जब भारत के व्यवसायिक, धार्मिक, सांस्कृतिक रिश्ते अन्य बाहरी देशों से हुऐ।
पहले घर और रसोई का सारा काम औरतों के जिम्मे होता था। लेकिन आधुनिक समय आते आते औरतों ने समाज में घर और बाहर दोनों जगह अपनी श्रेष्ठता और दक्षता दर्ज की। औरतें, घरेलू कामकाज के साथ साथ और आफिसों तक तो आ गईं, लेकिन मर्द रसोई की दहलीज़ तक कभी नहीं आया। धीरे धीरे खाना पकाने और खानें दोनों का समय कम होता गया। ऐसे भोजन पर ज्यादा ध्यान दिया जाने लगा जो कम समय में जल्दी से बन जाए। क्योंकि घर बाहर दोनों जगहों पर अपनी बढ़ती हुई जिम्मेदारी निभाते निभाते रसोई का समय कम होता गया।
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चना दाल के फरे/पीठा उत्तर प्रदेश में काफी प्रसिद्ध है। इसे हम स्टीम कर के या तड़का लगाकर दोनों तरह से खा सकते है।
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साबुत गेहूं के आटे, चीनी या गुड़, मसले हुए केले और सौंफ से बनाई जाती हैं
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आटा, अरहर की दाल उबालकर बनाया गया एक पौष्टिक भोजन है।
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मटर से बनी विभिन्न सब्जियों से स्वाद में एकदम अलग, उत्तरी भारतीय लोकप्रिय व्यंजन मटर का निमोना
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झारखंड का फेमस स्ट्रीट फूड
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लौकी दूध की जबरी